Jagjit Singh best ghazals made him “The King of Ghazals”
(8 फरवरी 1941 – 10 अक्टूबर 2011)
Jagjit Singh The King Of Ghazals
(Jagjit Singh Best Ghazals) जगजीत सिंह को हम किंग ऑफ़ ग़ज़ल के नाम से जानते है। आज भी इनकी ग़ज़लें नयी और पुरानी पीढ़ी बड़े शौक से सुनती है। महान शायरों जैसे मिर्ज़ा ग़ालिब की शोहरत को चार चाँद लगाने और आम लोगो तक उनकी रचनायें पहुँचाने का श्रेय भी जगजीत सिंह को ही जाता है।
Education and initial training
जगजीत सिंह जी का जन्म ब्रिटिश काल के बीकानेर राज्य में श्री गंगानगर में हुआ था। ये स्वतन्त्र भारत के राजस्थान राज्य में आता है। ये पंजाबी रामगढ़िया सिख परिवार से थे। इनका मूल परिवार पंजाब के रोपड़ शहर से था। इनके पिताजी उस वक़्त की ब्रितानी हुकूमत में सर्वेयर थे और बाद में हिंदुस्तानी हुकूमत में भी काम करते रहे। जगजीत सिंह जी की शुरूआती पढाई श्री गंगानगर के खालसा कॉलेज में ही हुई। इसके बाद ये जालंधर आ गए जहा के डी ए वि कॉलेज से इन्होने कला में स्नातक पूरी की।
स्नातक पूरी करने के बाद इन्होने आल इंडिया रेडियो जालंधर में छोटे छोटे गाने और संगीत का कार्य करना शुरू कर दिया। ये काम बहुत ही कम होते थे लेकिन जगजीत सिंह की कला साफ़ नज़र आने लगी। बाद में इन्होने हरयाणा की कुरुक्षेत्र विश्विधालय से इतिहास में स्नातकोतर की। जगजीत सिंह में बचपन से ही गाने और संगीत का शौक था। इनके पिताजी ने इस कला को पहचाना और उनके लिए संगीत के अध्यापक की भी व्यवस्था की। वो चाहते थे की जगजीत सिंह एक सरकारी कर्मचारी बने और एक अच्छे ओहदे पर बैठे, लेकिन वे कभी उनके संगीत के शौक के बीच में भी नहीं आये।
संगीत में इनके पहले अध्यापक थे पंडित छगन लाल शर्मा। ये शास्त्रीय संगीत में परांगत थे और इन्होने भी जगजीत सिंह की कला को बहुत निखारा। बाद में इनके अध्यापक उस्ताद जमाल खान हुए जिनसे इन्होने आगे शास्त्रीय संगीत सीखा। अपने स्कूल के दिनों में भी जगजीत सिंह अलग अलग जगह पे गीत गाते और संगीत बनाते थे।
Lyrics of one of the famous Ghazal of Jagjit Singh:
तुम को देखा तो ये ख़याल आया
ज़िंदगी धूप तुम घना साया
तुम को...
आज फिर दिलने एक तमन्ना की - (२)
आज फिर दिलको हमने समझाया
ज़िंदगी धूप तुम घना साया...
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे - (२)
हमने क्या खोया, हमने क्या पाया
ज़िंदगी धूप तुम घना साया...
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते - (२)
वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया
ज़िंदगी धूप तुम घना साया...
Another lyrics of one of the famous Ghazal of Jagjit Singh: ह्म ह्म ह्म ह्म ह्म ह्म ह्म ह्म ह्म ह्म होंठों से छूलो तुम मेरा गीत अमर कर दो होंठों से छूलो तुम मेरा गीत अमर कर दो बन जाओ मीत मेरे मेरी प्रीत अमर कर दो होंठों से छूलो तुम मेरा गीत अमर कर दो न उमर की सीमा हो न जनम का हो बंधन न उमर की सीमा हो न जनम का हो बंधन जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन नई रीत चलाकर तुम ये रीत अमर कर दो ये रीत अमर कर दो मेरा गीत अमर कर दो आकाश का सूनापन मेरे तनहा मन में
आकाश का सूनापन मेरे तनहा मन में पायल छनकाती तुम आजाओ जीवन में साँसें देकर अपनी संगीत अमर कर दो संगीत अमर कर दो मेरा गीत अमर कर दो मेरा गीत अमर कर दो मेरा गीत अमर कर दो
Initial work in Bombay (Mumbai):
जगजीत सिंह को अपनी कला पे भरोसा था और उन्हें ये लगता था के वो कला के क्षेत्र में कुछ बड़ा कर पाएंगे। इसी के चलते वो मार्च 1965 में बॉम्बे आ गए। जगजीत सिंह बिना घर में बताये ही बॉम्बे चले आये थे। शुरुआत में इन्हे छोटे छोटे विज्ञापनों में पार्श्व गायकी का काम मिला। जगजीत सिंह काफी वक़्त तक संघर्ष करते रहे। वे कभी विज्ञापन में पार्श्व गायकी करते तो कभी कुछ संगीत बना देते।
1967 में इनकी मुलाकात चित्रा दत्ता से हुई। चित्रा बंगाल से थी और पहले से शादीशुदा थी। इस वक़्त भी जगजीत सिंह संघर्षरत थे। इसके बावजूद भी दोनों का प्रेम परवान चढ़ा और 1969 में इन्होने शादी कर ली।
Collaboration with Chitra Singh and success of “The unforgettable”:
चित्रा जी भी संगीत में बहुत दक्ष थी। इन्होने मिल के संगीत के क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया। इन्होने युगल गीत गाने शुरू किये। इनके युगल ग़ज़ल और पंजाबी टप्पे बहुत ही मशहूर हुए। दोनों एक युगल संगीत जोड़ी की तरह संगीत के क्षेत्र में काम करते रहे। इनको असली सफलता 1977 में मिली जब इनकी एल्बम “The unforgettable” आयी।
अपनी ग़ज़ल गायकी के संघर्ष के दौर में इन्हे अधिक मुश्किल इसलिए आयी की उस वक़्त ग़ज़ल गायकी में पाकिस्तान के गायको का ही प्रभुत्व था। पाकिस्तानी ग़ज़ल गायक न केवल पाकिस्तान में बल्कि हिंदुस्तान में भी बहुत मशहूर थे। यहाँ तक की उनके कॉन्सर्ट भी हिंदुस्तान में बड़े पैमाने पे होते थे।
जगजीत सिंह की गायकी ने इस प्रभुत्व को न केवल तोडा बल्कि ये भी साबित किया की गायकी, अदाकारी और कलाकारी की कोई सीमा नहीं होती। इस एल्बम में दस गाने है जिसमें दो गाने युगलबंदी में गाये गए है। बाकि के गाने एकल है जो जगजीत और चित्रा जी में बराबर है। यु तो सभी गाने एक से बढ़कर एक बने लेकिन जगजीत सिंह को असली पहचान दिलाने वाला गाना साबित हुआ उनके द्वारा गायी गयी ग़ज़ल ” बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी “।
इस एल्बम को सफल बनाने के पीछे जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की गायकी के आलावा कुछ और महत्वपूर्ण तथ्य भी थे। जगजीत सिंह ने इस एल्बम के सभी गानो का संगीत दिया। इस संगीत में उन्होंने पारम्परिक वाद्यों के आलावा आधुनिक पाश्चात्य वाद्यों का भी इस्तेमाल किया। जगजीत सिंह ने एक बार इसी बात के जिक्र में कहा था की वे चाहते थे की ग़ज़ल की शैली को वो हर आम और खास तक पहुँचाना चाहते थे। इसके लिए वो इसे कुछ आधुनिक आयाम देना चाहते थे। वे चाहते थे की ग़ज़ल बेहद सरल हो ताकि वो लोगो की समझ में आ सके और साथ ही वो सीधा और सरल संगीत चाहते थे ताकि लोग उसका भी आनंद उठा सके।
और भी हैरान कर देने वाली बात ये रही के यह एल्बम गैर-परंपरागत तरीके से बनाई और रिलीज़ की गयी थी। दरअसल ये एल्बम उस ज़माने में एक कैसेट में पहले नहीं बनी थी जो की उस वक़्त एल्बम बनाने और बेचने का परम्परागत तरीका था। ये एल्बम विनाइल रिकार्ड्स या जिसे लॉन्ग प्ले कहा जाता है उसपे बनाई गयी थी। ये एक प्रकार की डिस्क होती है जिसपर गाने रिकॉर्ड किये जाते है। विनाइल डिस्क उस वक़्त तक लगभग मार्किट से निकल चुके थे और उनकी जगह सस्ती और आसानी से मिलने वाली कैसेट ने ले ली थी। इसके बावजूद भी इस एल्बम को विनाइल रिकार्ड्स पे रिकॉर्ड किया गया। इसलिए भी लोग 1982 में आयी “The latest” को जगजीत सिंह की पहली एल्बम मानते है।
Career and life after “The unforgettable”:
1977 की अपार सफलता के बाद जगजीत और चित्रा को देश विदेश में कॉन्सर्ट के लिए बुलाया जाने लगा। इन्हे बॉलीवुड में संगीत के लिए भी ढेर सारा काम मिला। 1979 में इनका एक कॉन्सर्ट वेम्ब्ली में हुआ जो इंग्लैंड में है। ये कॉन्सर्ट उस जमाने का सबसे चर्चित कॉन्सर्ट साबित हुआ। उस कॉन्सर्ट के कैसेट्स और रिकार्ड्स की बहुत बिक्री भी हुई। उनकी एल्बम दी लेटेस्ट अस्सी के दशक के शुरुआत में आयी। इसकी ग़ज़ल सुदर्शन फ़ाकिर ने लिखी थी। इसी एल्बम में जगजीत सिंह ने अपने जीवन की सबसे मशहूर ग़ज़ल ” वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी ” भी गायी।
1981 में आयी फिल्म प्रेम गीत का गाना ‘ होठो से छू लो तुम ” आज भी शौक से सुना जाता है। 1982 में जगजीत सिंह ने लगातार दो फिल्मो में हिट संगीत दिया। यही नहीं उन्होंने इन गानो को गाया भी। ये फिल्मे थी “अर्थ” और “साथ साथ”। ये फिल्में जगजीत सिंह शोहरत में मील का पत्थर साबित हुई। जगजीत सिंह और चित्रा सिंह को इसके बाद हिंदी फिल्मो में भी बहुत काम मिलने लगा। इसके आलावा वे दोनों पंजाबी फिल्मो में भी संगीत देते रहे। जगजीत सिंह ने दूरदर्शन के धारावाहिकों में भी बहुत काम किया है। इनका पार्श्व संगीत और इनके गाये हुए गीत अलग अलग धारावाहिकों या दूरदर्शन के अन्य कार्यक्रमों में सुनने को मिल जाते थे। इनका सबसे उल्लेखनीय कार्य रहा मिर्ज़ा ग़ालिब धारावाहिक के लिए संगीत देना और मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़लों को अपनी आवाज़ देना।
मिर्ज़ा ग़ालिब धारावाहिक 1988 में दूरदर्शन पे चित्रित हुआ। इसके निर्माता निर्देशक मशहूर लेखक, कवी, और निर्देशक गुलज़ार साहब थे। इस धारावाहिक को लिखने के दौरान गुलज़ार साहब चाहते थे की मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़लें इस धारावाहिक में गायी जाये लेकिन गायक की आवाज़ में गहरायी हो। इसके लिए बहुत से नाम उन्हें बताये गए। बड़े से बड़े ग़ज़ल गायक का नाम लिया गया लेकिन गुलज़ार साहब को कहीं भी शंका नहीं थी की ये काम सिर्फ एक ही आवाज़ पूरा कर सकती है। वो थी जगजीत सिंह की आवाज़।
जगजीत और चित्रा ने मिल के इस धारावाहिक के लिए न केवल संगीत बनाया बल्कि गाने भी गाये। इस धारावाहिक के गाने इतने ज्यादा सुने जाने लगे की सारेगामा ने इसके लिए एल्बम राइट्स भी खरीद लिए। जगजीत और चित्रा के कंसर्ट्स में की जाने वाली फ़रमाईशो में मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़लें पहले नंबर पे होती थी।
1990 में एक कार हादसे में इनके पुत्र की मृत्यु हो गयी। इसके बाद चित्रा जी ने गाना छोड़ दिया। जगजीत सिंह भी एक लम्बे आरसे तक गीत संगीत से दूर रहे। वे वापिस तो आये लेकिन उनके ऊपर हादसे का असर साफ़ दिखता था।
10 अक्टूबर 2011 को इनका निधन ब्रेन हेमरेज से हो गया। इनकी उम्र 70 वर्ष थी। जगजीत सिंह ने न केवल ग़ज़ल गायकी को नए आयाम दिए, इन्होने ग़ज़लों को जन साधारण के समझ में आने लायक बनाया। इनकी ग़ज़ल का संगीत बहुत ही शांत और मन को सुकून देने वाला होता था। मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़लों को दुनिया भर में मशहूर करने का श्रेय भी काफी हद तक इनके संगीत और गायकी को जाता है। इन्हे इनकी असाधारण गायकी और कार्यो के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
Some of the greatest work of Jagjit Singh (Jagjit Singh Best Ghazals):
- 1977 दी अनफॉरगेटेबल एल्बम जो लॉन्ग प्ले या विनाइल रिकॉर्ड पे आयी
- 1981 प्रेमगीत में गाया गया ” होठो से छू लो तुम “
- 1982 फिल्म साथ साथ और अर्थ के सभी गाने
- 1982 दी लेटेस्ट एल्बम
- 1988 मिरज़ा ग़ालिब दूरदर्शन के धारावाहिक के लिए संगीत और ग़ज़ल गायक
- 1994 मम्मो ” हज़ार बार रुके हम “
- 1995 मिराज एल्बम
- 1998 फिल्म दुश्मन ” चिट्ठी न कोई सन्देश “
- 1999 सरफ़रोश ” होशवालों को खबर क्या “
- 1999 मरासिम एल्बम
- 2000 फिल्म तरकीब ” किसका चेहरा अब में देखु “
- 2000 सहर एल्बम
- 2001 फिल्म तुम बिन ” कोई फ़रियाद ” 2003 फिल्म जॉगर्स पार्क ” बड़ी नाज़ुक है ये “
Awards and achievements:
- 1998 में साहित्य अकादमी अवार्ड
- 1998 साहित्य कला अकादमी अवार्ड
- 1998 लता मंगेशकर सम्मान (मध्य प्रदेश सरकार )
- 1999 दयावती मोदी अवार्ड
- 2002 और 2005 में सर्वश्रेष्ठ टाइटल गीत के लिए इंडियन टेली अवार्ड
- 2003 में पद्मा भूषण अवार्ड
- 2005 में ग़ालिब अकादमी अवार्ड (दिल्ली सरकार )
- 2006 टीचर्स लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
- 2012 मरणोपरांत राजस्थान रत्न ( राजस्थान सरकार )
जगजीत सिंह द्वारा गायी गयी कुछ मशहूर ग़ज़लें (Jagjit Singh Best Ghazals) आप अभी सुन सकते है:
AAH KO CHAHIYE KYA IK UMR ASAR HONE TAK – JAGJIT SINGH (One of Jagjit Singh Best Ghazals)
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तकआशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तकहम ने माना कि तग़ाफुल न करोगे लेकिन
हम ने माना कि तग़ाफुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको ख़बर होने तक
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तकग़म-ए-हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होने तक
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
HAZARON KHWAHISHEN AISI – JAGJIT SINGH (One of Jagjit Singh Best Ghazals)
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी के हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकलेनिकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकलेमुहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकलेहज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी के हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकलेख़ुदा के वास्ते पर्दा नकाबे से उठा ज़ालिम
कहीं ऐसा ना हो यहाँ भी वही काफ़िर सनम निकलेकहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़
कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकलेहज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी के हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले
DIL HI TO HAI – JAGJIT SINGH (One of Jagjit Singh Best Ghazals)
Dil hee to hai na sang-o-khisht
Dard se bhar na aaye kyon
Royenge ham hazaar baar,
Koi hamein sataaye kyon
Dil hee to hai na sang-o-khisht
Dard se bhar na aaye kyonDair naheen, haram naheen,
Dar naheen, aastaan naheen
Dair naheen, haram naheen,
Dar naheen, aastaan naheen
Baithe hain rehguzar pe ham,
Ghair hamein uthaaye kyon
Dil hee to hai na sang-o-khisht
Dard se bhar na aaye kyonHaan wo naheen khudaparast,
Jaao wo bewafa sahee
Haan wo naheen khudaparast,
Jaao wo bewafa sahee
Jisko ho deen-o-dil azeez,
Uskee galee mein jaaye kyon
Dil hee to hai na…
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