Mirza Ghalib Shayari Ustad
“Mirza Ghalib Shayari” (मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी) is his interpretation of love and life, which continue to touch our hearts. The quotes on love, life, nature ease your pain. You may be gone from our sight but you are never gone from our heart. Not only you will find Mirza Ghalib Shayari here but also the lyrics and links to the famous video songs.
(27 दिसंबर 1797 – 15 फरवरी 1869)
Mirza Ghalib Shayari is among the best, thus he is considered as the legendary poet
जिन उंचाइओ पर मिर्ज़ा ग़ालिब अपनी शायरी से पहुंचे है, उन उंचाइओ को शायद ही कोई शायर आज तक छू पाया है। आज शायरी का नाम ही मिर्ज़ा ग़ालिब है, और आज शेरो शायरी का नाम लेते ही सिर्फ एक ही नाम सब से पहले याद आता है।
मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म आगरा के कला महल में हुआ था। इनका तब नाम मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खान रखा गया। मिर्ज़ा ग़ालिब के दादा एक तुर्क थे और वो समरकंद (जो अब उज़्बेकिस्तान में है) से हिंदुस्तान आये। उस वक़्त अहमद शाह का शासन था और मिर्ज़ा ग़ालिब के दादा जी को उनके अच्छे काम के लिए पहासू (अब बुलंदशहर , उत्तर प्रदेश में) का उप जिला इनाम में दिया गया। उस के बाद वे आगरा में रहने लगे। मिर्ज़ा ग़ालिब के पिता 1803 की अलवर की लड़ाई में मारे गए और कुछ ही वर्ष में इनके चाचा की भी मृत्यु हो गयी।
इस वक़्त मिर्ज़ा ग़ालिब की उम्र केवल 5 वर्ष हे थी। 13 वर्ष की उम्र में इनका निकाह उमराओ बेगम से कर दिया गया। निकाह के बाद मिर्ज़ा ग़ालिब दिल्ली आ गए और ताउम्र वही रहे। ग़ालिब 11 वर्ष की उम्र में ही शेर लिखना शुरू कर चुके थे।
ग़ालिब की पहली जबान उर्दू थी हालाँकि घर में फ़ारसी भी बोली जाती थी। ग़ालिब के शेरो में नयापन था। उनकी ग़ज़ल सब से अलग होती। उस वक़्त के शायर और ग़ज़ल लिखने वाले ज्यादातर प्यार और जुदाई के दर्द को ब्यान करने के लिए ही ग़ज़ल लिखते थे , लेकिन ग़ालिब ने जीवन के उतर चढाव , उसके रहस्य , दर्शन शास्त्र और कितने ही अलग अलग विषय पर ग़ज़ल लिखी जिस से ग़ज़ल लेखन को नए मायने मिले।
दिल्ली में बहादुर शाह जफ़र की सल्तनत के समय ग़ालिब की लोकप्रियता काफी बढ़ गयी थी। बहादुर शाह जफ़र खुद भी अच्छे शायर थे और अपने बेटे की शेरो शायरी तालीम के लिए एक अच्छे शायर की तलाश में थे। बहादुर शाह जफ़र ने मिर्ज़ा ग़ालिब को अपने बड़े बेटे की शायरी की तालीम के लिए जल्दी ही बुलावा भेजा। मिर्ज़ा ग़ालिब भी बहुत गहरायी से तालीम देने में जुट गए। मिर्ज़ा ग़ालिब के लिखने और शेर कहने के अलग अंदाज़ के कारन वो जल्दी ही बहादुर शाह के खास दरबारिओ में शामिल हो गए। मिर्ज़ा ग़ालिब न केवल अपनी शायरी के लिए बल्कि अपनी चतुरता के लिए भी जाने जाते थे। इस चतुराई के रहते वो कभी भी दरबारिओ के दबाव में नहीं आये और वो बहादुर शाह जफ़र के सबसे करीबियों में गिने जाने लगे।
Generic Questions About Ghalib:
Name Ghalib's closest rival in poetry? शायरी में गालिब के सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी का नाम बताएं? Shaayaree mein gaalib ke sabase kareebee pratidvandvee ka naam bataen?
Zauq, tutor of Bahadur Shah Zafar II, was closest rival of Ghalib. बहादुर शाह जफर द्वितीय के शिक्षक ज़ौक, गालिब के निकटतम प्रतिद्वंद्वी थे। Bahaadur shaah japhar dviteey ke shikshak zauk, gaalib ke nikatatam pratidvandvee they.
Name the disciple of Ghalib? ग़ालिब के शागिर्द का नाम बताइए? Ghalib ke shagird ka naam bataiye?
Altaf Hussain Hali was a shagird of Ghalib. अल्ताफ हुसैन हाली गालिब के शागिर्द थे। Altaaph husain haalee gaalib ke shaagird they.
Apart from poetry, Mirza Ghalib was an expert in which trait? शायरी के अलावा मिर्जा गालिब किस असफान में माहिर थे। Shayari ke alava mirza galib kin asfaan mai mahir the?
Besides an Urdu poet, Mirza Ghalib was a gifted letter writer too. उर्दू शायर के अलावा मिर्ज़ा ग़ालिब एक प्रतिभाशाली पत्र लेखक भी थे। Urdu shaayar ke alaava mirza gaalib ek pratibhaashaalee patr lekhak bhee the.
Sample Mirza Ghalib Shayari:
क़ैद-ए-हयात-ओ-बंद-ए-ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं, मौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाए क्यूँ?
1857 की क्रांति के बाद मिर्ज़ा ग़ालिब की जिंदगी में बहुत बदलाव आया। अंग्रेजी हुकूमत ने शहंशाह बहादुर शाह जफ़र को कैद कर के रंगून भेज दिया। मुग़ल साम्राज्य और दरबार के नष्ट होते हे मिर्ज़ा ग़ालिब की आय का साधन भी समाप्त हो गया। इस दौरान मिर्ज़ा ग़ालिब की धन संपत्ति भी जाती रही, यहाँ तक की उनके पास अपने खाने के लिए भी पैसे नहीं थे। मिर्ज़ा ग़ालिब छोटे छोटे समारोह और मुशायरो में जा के लोगो को प्रभावित करते रहे और इसी से गुज़र बसर करते रहे। मिर्ज़ा आम जान मानस में तो मशहूर रहे लेकिन वे कभी दुबारा उतनी धन दौलत नहीं कमा पाए। मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन का संघर्ष और दर्द उनकी शायरी में अकसर देखने को मिला।
मिर्ज़ा ग़ालिब की मृत्यु दिल्ली में ही हुई। मिर्ज़ा ग़ालिब जिस मकान में रहते थे उसे अब ग़ालिब की हवेली के नाम से जाना जाता है और उसको मिर्ज़ा ग़ालिब के समारक के रूप में दब्दील किया गया है।
मिर्ज़ा ग़ालिब पर पहली फिल्म 1954 में बनी जिस में अपने वक़्त के मशहूर अभिनेता भारत भूषण ने मिर्ज़ा का किरदार निभाया। इसके बाद 1988 में मशहूर गीतकार गुलज़ार ने दूरदर्शन के लिए एक टीवी सीरियल बनाया। इस सीरियल का नाम भी मिर्ज़ा ग़ालिब ही रखा गया और इसमें दिग्गज कलाकार नसीरुद्दीन शाह ने मिर्ज़ा ग़ालिब का किरदार निभाया। मिर्जा ग़ालिब सीरियल का संगीत और उसमें गीत को हिंदुस्तान के मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ दी। जगजीत सिंह की आवाज़ और संगीत ने मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़लों को आम लोगो तक पहुँचाया। मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन या उनके जीवन के दौर पर अनगिनत नाटक बने है। उनकी शायरी से ही प्रभावित होकर कई शायरो ने इस क्षेत्र में कदम रखा। मिर्ज़ा ग़ालिब के कुछ शेर निम्नलिखित है
Creator: Tashi Tobgyal
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Awards (पुरस्कार):
मिर्ज़ा ग़ालिब को मुग़ल दरबार में बहुत से पुरस्कारों से नवाज़ा गया। इनमें से कुछ का उल्लेख इस प्रकार है:
1850 में तब के मुग़ल सुलतान बहादुर शाह जफ़र इन्हे ‘ दबीर- उल – मुल्क ‘ का ख़िताब दिया।
इसी के साथ उन्होंने ग़ालिब को ‘ नज़्म उद – दौला ‘ के ख़िताब से भी नवाज़ा। ‘ मिर्ज़ा नोशा का ख़िताब मिलने के बाद ग़ालिब के नाम के साथ मिर्ज़ा हमेशा के लिए जुड़ गया।
ग़ालिब के जीवन और उनकी कला को आज़ाद हिंदुस्तान में बहुत पहचान मिली है। उनके सम्मान में बहुत सी कलाकृतिया, मुर्तिया, लाइब्रेरी और अन्य कई तरीको से उनके कार्यो को याद किया जाता है। जामिआ मिलिया इस्लामिआ विशवदिद्यालय में 2000 में एक मूर्ति लगाई गयी जिसमें उन्हें महान कवी कहा गया है। मुंबई के मिर्ज़ा ग़ालिब रोड में एक 10 फ़ीट लम्बी दिवार भित्ति बनाई गयी है। इसमे मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन और उनकी शायरी उकेरी गयी है। नयी दिल्ली में मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन और उनके बेह्तरीन कार्य के लिए एक म्यूजियम भी बनाया गया है।
ग़ालिब के मशहूर शेर (Sample Mirza Ghalib Shayari)…
हर एक बात पर कहते हो के तुम के तू क्या है
तुम्ही कहो के ये अंदाजे गुफ्तगू क्या है
हाथो की लकीरों में मत जा ए ग़ालिब
किस्मत उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते
पीने दे शराब मस्जिद में बैठकर ए ग़ालिब ,
या वो जगह बता जहा खुदा नहीं
मस्जिद खुदा का घर है ,पीने की जगह नहीं
काफिर के दिल में जा , वहा खुदा नहीं
काफिर के दिल से आया हु मै ये देखकर
खुदा मौजूद है वहा , पर उसे पता नहीं
हजारो ख्वाहिशे ऐसी की हर ख्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी कम निकले
इश्क पर जोर नही , है ये वो आतिश ग़ालिब
के लगाये ना लगे , बुझाये ना बुझे
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़ीश्त, दर्द से भर ना आये क्यों,
रोयेंगे हम हज़ार बार, कोई हमें रुलाये क्यों
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
जगजीत सिंह द्वारा गायी गयी, मिर्ज़ा ग़ालिब की कुछ मशहूर ग़ज़लें आप अभी सुन सकते है:
AAH KO CHAHIYE KYA IK UMR ASAR HONE TAK – MIRZA GHALIB – JAGJIT SINGH:
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक
हम ने माना कि तग़ाफुल न करोगे लेकिन
हम ने माना कि तग़ाफुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको ख़बर होने तक
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
ग़म-ए-हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होने तक
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
DIL HI TO HAI – MIRZA GHALIB – JAGJIT SINGH
Dil hee to hai na sang-o-khisht
Dard se bhar na aaye kyon
Royenge ham hazaar baar,
Koi hamein sataaye kyon
Dil hee to hai na sang-o-khisht
Dard se bhar na aaye kyon
Dair naheen, haram naheen,
Dar naheen, aastaan naheen
Dair naheen, haram naheen,
Dar naheen, aastaan naheen
Baithe hain rehguzar pe ham,
Ghair hamein uthaaye kyon
Dil hee to hai na sang-o-khisht
Dard se bhar na aaye kyon
Haan wo naheen khudaparast,
Jaao wo bewafa sahee
Haan wo naheen khudaparast,
Jaao wo bewafa sahee
Jisko ho deen-o-dil azeez,
Uskee galee mein jaaye kyon
Dil hee to hai na…
HAZARON KHWAHISHEN AISI – MIRZA GHALIB – JAGJIT SINGH:
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी के हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी के हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले
ख़ुदा के वास्ते पर्दा नकाबे से उठा ज़ालिम
कहीं ऐसा ना हो यहाँ भी वही काफ़िर सनम निकले
कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़
कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी के हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले
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